Reclaim Ranakpur | 11Questions for Anandji Kalyanji Pedhi

राणकपुर तीर्थ और मुछाला महावीर तीर्थ का बुनियादी सवाल उठाने वाले गच्छाधिपतिश्री पंडित महाराजजी को स्पष्टीकरण देने के बजाय, आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी अहमदाबाद में जैन जनता के समक्ष जाहिर में इन दोनो तीर्थो के बारे में स्पष्टता दे रही है।

क्या आप उस सभा में जा रहे हैं? तो पेढ़ी के पास जरूर से इन ग्यारह प्रश्नों का सबूतों और तर्कों के साथ स्पष्टीकरण मांगे। वास्तव में, बहुत सारी स्पष्टताएं आवश्यक है, परंतु उसमें से हम ग्यारह सवालों को यहां देखेंगे।

नंबर एक – राणकपुर और मुछाला महावीर तीर्थ की मालिकी संबंधित कानूनी समस्या इतने दसको से चल रही है, तो इस मामले से जैन संघ को क्यों अंधेरे में रखा गया?

नंबर दो – दोनों तीर्थों की मालिकी वर्तमान में किन के हाथो में है? आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी या सरकार?

नंबर तीन – यदि इन तीर्थों की मालिकी हमारे हाथों में नहीं है, तो ऐसी जानकारी पेढ़ी को कब मिली? और उसके पहले यह जानकारी पेढ़ी को समय-समय पर मिलती रहे, ऐसा बंदोबस्त क्यों नहीं किया गया?

नंबर चार – ज्योत संस्था द्वारा जो CEC Report और Supreme Court का judgement प्रसारित किया जा रहा है, वह दस्तावेज सच्चा है या फर्जी?

नंबर पांच – यदि वह दस्तावेज सही है, तो राणकपुर के report में CEC ने कुछ ऐसी बात बताइ है कि, सारा राणकपुर तीर्थ परिसर Reserve Forest और Wildlife Sanctuary के रूप में notified हो चुका है। पेढ़ी ने किसी भी प्रकार का दावा, संबंधित अधिकारियों के समक्ष किया नहीं है। यहां पर सवाल यह है कि, पेढ़ी ने उस वक्त तीर्थ की मालिकी का दावा क्यों नहीं किया?

नंबर छे – यदि दावा किया हो, तो उसका कोई सबूत है? और यदि उसके सबूत है तो वे सबूत CEC और Supreme Court के समक्ष क्यों प्रस्तुत नहीं किये गयें? और ऐसी गलत जानकारी वाला CEC का report पेढ़ीने क्यों Supreme Court में accept कर लिया?

नंबर सात – मुछाला महावीरजी के CEC के report में ऐसा कुछ लिखा है कि, ‘पेढ़ी ने संबंधित अधिकारियों के समक्ष और settlement प्रक्रिया के समय तीर्थ का, किसी भी प्रकार से दावा किया नहीं है, इसलिए वन विभाग ही इस मिलकत का मालिक है’। यहां पर भी यह प्रश्न होता है कि, पेढ़ी ने उक्त दावा किया क्यों नहीं? और जैन संघ के लिए अत्यंत नुकसानकारक ऐसा report पेढ़ी ने Supreme Court में क्यों स्वीकार लिया?

नंबर आठ – तीर्थो की मालिकी सरकार की है, ऐसा स्वीकार कर लेने का अधिकार पेढ़ी के पास कहां से आया? उसका कोई सबूत है?

नंबर नौ – ‘हमारे हाथो में इन दोनो तीर्थो की मालिकी नहीं है’ ऐसा Permissive Possession का कानूनी तात्पर्य निकलता है या नही? इसका सही अर्थ और उसका प्रमाण क्या है?

नंबर दस – इन दोनो तीर्थों को वन विभाग के कानून बंधनकर्ता बनते है या नहीं? ये कानून हमारे तीर्थ की पवित्रता और प्रबंधन में भारी हस्तक्षेप नहीं कर सकते?

नंबर ग्यारह – इन दोनों तीर्थों के बारे में पंडित महाराजजी ने साडे चार महीने पहले पत्र लिखकर पेढ़ी से स्पष्टीकरण मांगा था, उसका जवाब आज दिन तक पेढ़ी ने पंडित महाराजजी को क्यों नहीं दिया?

इतना प्रत्येक व्यक्ति याद रखें: दूसरे – तीसरे कितने ही positive पहलू क्यों न हो, लेकिन उसमें उलझे बिना इन दोनो तीर्थो के स्वामित्व के अधिकार पर हमें सबसे पहले ध्यान देना है। दूसरे ढेर सारे अच्छे कार्य किये भी हो, तो भी तीर्थो के स्वामित्व के संदर्भ में उसकी विचारणा करना अप्रस्तुत बन जाता है।

दूसरी बात, यदि राणकपुर तीर्थ पूरी तरह से जैन संघ के हाथों में ही है, उसके पक्के सबूत यदि हमारे पास है, तो उसके जैसा आनंद का अवसर हमारे लिए कोई नहीं है। लेकिन, सिर्फ मुंह की बातों से काम नहीं बनेगा, इसके लिए ठोस प्रमाण और दस्तावेज अनिवार्य है। आशा रखते हैं कि, पेढ़ी ठोस प्रमाण और दस्तावेजों को संघ के समक्ष प्रस्तुत करेगी।

चलिए हम भी जागे, पेढ़ी को भी जगाए, जागृति का शंखनाद जगाएं।
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