Jineshwar Dev ke Shashan ko | Mahasattvashali – 207
जिनेश्वरदेव के शासन को, देव – गुरु – धर्म को समर्पित रहकर धर्मरक्षा आदि के
जिनेश्वरदेव के शासन को, देव – गुरु – धर्म को समर्पित रहकर धर्मरक्षा आदि के
उंची धर्मप्रभावना करनी हो… तो भी अपवाद सेवन करने की आज्ञा है..!! और रक्षा के
हजारों-अरबों का खर्च करें तो भी हमारे पवित्रतम शत्रुंजय, शिखरजी, राणकपुर जैसे भव्य तीर्थों का
जिनशासन की हितचिंता के लिए मेरा जो कर्तव्य या दायित्व है… वो करने में जीवनभर
Historical records बोल रहे हैं..!! भारत के इतिहास में विदेशी आक्रमणों और विधर्मीयों द्वारा सब
शस्त्रों में गणधरों को श्रेष्ठ भावतीर्थ कहा गया है। लेकिन उनके लिए भी पवित्र तीर्थभूमि
हमने संसार छोड़कर महाव्रत धारण कीये हैं। जीवनभर अपने आत्मकल्याण का ही लक्ष्य रहा है
वर्तमान में जैनधर्म के ज्यादातर आराधकों की एक बड़ी कमजोरी यह है कि उन्हें तीर्थ
शासन की व्यवस्था टूटे, निंदा हो और शासन को दाग लगे ऐसा कोई करे तो