अरावली पर्वतमालाओं की गोद में निखरे हुए प्राकृतिक वातावरण में निर्मित देवविमानसा राणकपुर तीर्थ… आनेवाले यात्रियों को परमात्म भक्ति और आध्यात्म का श्रेष्ठ आलंबन प्रदान करता है। मेवाड के राणा ने भी धरणाशाह की धर्मभावना की कद्र करते हुए बड़ी उदारता से यह जमीन प्रदान की थी | शर्त बस इतनी ही थी कि इस जमीन को किसी commercial purpose में use ना किया जाए, ना ही इसे बेच दिया जाए। ऐसी पवित्र तीर्थ भूमिको आज सरकार tourist place या सार्वजनिक place बनाने पर तुली है ! सोचिए !! इस तीर्थ की मालिकी चले जाने से जैनों को कितना नुकसान हो रहा है?
-प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा