राणकपुर जैन धर्म की अनमोल विरासत है। तीर्थंकरों से जो धर्म की, शास्त्रों की और तीर्थों की विरासत हमें मिली है क्या वह आपको अपनी लगती हैं ?
या पराई? घर-परिवार आपको अपने लगते हैं, संपत्ति- Status आदि की Importance लगती है।
लेकिन जैन धर्म की अनमोल भव्य और बेजोड़ विरासत के प्रति इतनी उपेक्षा और निष्क्रियता है, इतना अनादर का भाव है कि पूरा तीर्थ लूट जाए, Convert हो जाए, धार्मिक संपत्ति का नाश हो जाए, तो भी कोई परवाह नहीं ??
प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय युगभूषणसूरिजी महाराजा
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