मैंने आज तक पेढ़ी की या तीर्थकी गुप्त बातें जानते हुए भी कभी जाहीर नहीं की ।
इसबार भी रणकपुर की बाते जाहिर करने से पहले मैंने सारे गच्छाधिपति और प्रतिनिधियोंको पत्र लिखकर भेजे हैं।
लेकिन उनकी और से जरा सा भी प्रतिसाद नहीं है।
इसलिए तीर्थ की सुरक्षा हेतु जैनों को जागृत करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रहा… कोई शासन का प्रेमी जाग जाए, उनके दिल से तीर्थ की भक्ति जागृत हो जाए,
और तीर्थरक्षा के लिए तत्पर होकर आगे कदम बढ़ाए, तो शायद तीर्थ को हम बचा सकें।
- प. पू. गच्छाधिपती आचार्य भगवंत
श्रीमद्विजय युगभूषणसूरिश्वरजी महाराजा