पेढ़ी सब सोच समझ कर ही करती है!
सच में?
5 – पूर्वजों का कहना है…
(गुजराती श्रृंखला में से भावानुवादित)
“शेठ आणंदजी कल्याणजी *पेढ़ी के वहीवट की नियमावली(बंधारण)
व्याख्याएं भी कितनी विचित्र और अधूरी है!”
जैन याने ‘श्वे. मू. जैन’ याने क्या?
उस कुटुंब में जन्मे हुए वही जैन?
या उस परंपरा की मान्यताओं का अनुयायि हो वो ही जैन?
बराबर से स्पष्टीकरण क्यों नहीं किया?
भविष्य के व्यवस्थापक उलझ उलझ के हैरान हो जाएंगे। श्री संघ की व्याख्या में सिर्फ जैन श्वे. मूर्तिपूजक श्रावक संघ को ही रखा है। तो श्री संघ में गुरुओं को स्थान नहीं है?
वे संघ से बाहर हैं?
सही मायने में श्री चतुर्विध श्रमण संघ और श्री संघ पर्यायवाची शब्द ही हैं।
श्री संघ ने व्यवस्था के कितने ही मुद्दे श्रावकों को करने के लिए सौंपे है। सिर्फ उस कारण से श्रावक वर्ग प्रतिनिधि के तौर पर स्व-मत नहीं दे सकते। शासन में श्रावकों को मुनीम के स्थान पर रखा हैं, नही कि अधिकार संपन्न स्वतंत्र प्रतिनिधि के स्थान पर।
गांवों में भी सिर्फ श्रावक वर्ग – ही संघ नहीं है। वे भी श्री चतुर्विध श्रमण संघ के रूप में व्यवस्था संभालने वाले होते हैं। *पेढ़ी के वर्तमान कार्यवाहकों को खास मुद्दों के विषयों का भी कोई ख्याल नहीं होना – यह बहुत ही खेदजनक बात है…”
श्राद्धवर्य पंडित श्री प्रभुदास बेचरदास पारेख
(हित-मित-पथ्यं-सत्यं ता. 11-02-1969 का प्रकाशन)
Our ancestors have time and again reprimanded Seth Shri Anandji Kalyanji Pedhi for its innumerable mistakes and wrongdoings committed against the interest of Jin Shaasan.
‘Purvajo Kahe Che’, is a series that reveals these documented facts and historical insights for the benefit and awareness of Shri Chaturvidh Sangh.