Yeh vahi pavitra giriraj hai | Mahasattvashali – 236

यह वही महापवित्र गिरिराज है…

जहाँ, तीर्थंकरों के दर्शाए पथ पर चलते हुए अनेक साधकों ने तप-ध्यान- कार्योत्सर्ग आदि साधनाएँ करके, अनादिकालीन आत्मा के राग-द्वेष, विकृतियाँ, दुःख, संताप आदि को मूल से हटाकर शाश्वत कालीन अनंत सुखमय अवस्था को प्राप्त की है…!!

और वहाँ के वातावरण को शुभ मनोवर्गणा के पुद्गलों से वासित किया है…!!

अब हमारा “फर्ज” बनता है, इस पवित्र गिरिराज की पवित्रता को अखण्डित रूप से टीकाकर सुरक्षित करने का…!!

– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा ।
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