Sadhu Ki Malikiyat ? | Mahasattvashali – 73

साधु हमेशा निष्परिग्रही होते हैं और परिग्रह हमेशा ममत्व, आसक्ति से होता है ।

जिस पर ममत्व, राग, आसक्ति न हो, ऐसी मालिकीयत कभी परिग्रह नहीं हो सकती !

शास्त्रों में कई शास्त्रपाठ मिलेंगे जिसमें साधु की मालिकीयत स्वीकारी गई हो !

फिर भी आज बिना सोचे-समझे जो प्रचार हो रहे हैं, उससे जैनी भ्रमित हो रहे हैं ।

इस प्रचार से वो शासन की व्यवस्थाओं को तोड़ रहे हैं, ऐसा वो नहीं समझ रहे ।

– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा ।
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