Gruhastho ki iccha na ho to bhi upashray me pravesh ? | Aakhir Kyon – Ep 8

प्रश्न : पंडित महाराज जी अवग्रह के बारे में शास्त्राधार बता रहे है, लेकिन गृहस्थो की इच्छा न हो तो भी उपाश्रय में प्रवेश कर लेने जैसी प्रवृत्तियो का कोई शास्त्राधार है ?

उत्तर : जब जाहिर उपाश्रय हो, आराधना के लिए श्री संघ को समर्पित कर दिया हो, तब वहीवटदारो की अनिच्छा मूलभूत व्यवस्था को दबाकर किसी को अंतराय नहीं कर सकती, और यदि कोई करे तो उसको सेठ पर मुनीम जी का हुकम चलाने जैसा कहा जाएगा । यानि उपाश्रय के ट्रस्टीयो की स्वतंत्र इच्छा या अनिच्छा जरा भी निर्णायक नहीं होती है ।

बाकी संयोग विशेष में, कोई गृहस्थो की व्यक्तिगत मालिकी वाले स्थान में भी जबरदस्ती से रहने के आपवादिक विधान शास्त्रो में है, जिसमें हम देख सकेंगे कि, महात्माओ की – गच्छ की संयम यात्रा निर्विघ्न चलती रहे उस बात को कितनी अहमियत दी गई है ।

महान आगम श्री व्यवहार सूत्र में शास्त्रकार भगवंत जो फरमाते है, उसका उपयोगी भावार्थ इस तरह है कि :
एक गाँव से दूसरे गाँव की ओर जाते समय बीच में ज्यादा अंतर हो अथवा दुष्काल या महामारी आदि कारण होने पर यदि कोई जगह वसति न मिलती हो तो पहले वसति में ठहरके बाद में वसति के स्वामी को जताना चाहिए ।

वसती के स्वामी के पास याचना करने पर संमति दे दे तो अच्छा, लेकिन संमत न हो तो धर्मकथा कहना, निमित्त ज्ञान का प्रयोग करना चाहिए । तब भी यदि संमति न दे तो कठोर भाषा में कहना चाहिए कि, हमे बाहर निकालने से जो नुकसान होंगे उसका भारी दोष तुम्हें लगेगा ।

यह कहने पर भी यदि न माने तो उनके स्वजन मित्रो द्वारा समझाना चाहिए, तो भी न माने तो जबरदस्ती से भी समझाना चाहिए ।

यदि वह गृहस्वामी साधुओ के उपकरणो को बाहर ले जाने या तो तोडने लगे तो उसे रोकना चाहिए ।

ऐसा भी कहना चाहिए कि, हम तुम्हारे अपराध को बर्दाश्त कर लेंगे, लेकिन मेरे बलवान साधु उसको सहन नहीं करेंगे ।

तब भी वह गृहस्वामी आक्रमण करना चाहे तो अंत में बलवान साधु अन्य रीति से बल प्रदर्शन करके उस गृहस्वामी को स्पष्ट चेतावनी दे दे ।

यह शास्त्राज्ञा इतनी स्पष्ट दिशा दिखाती है कि, साधुओ की संयम यात्रा में सहाय करना शक्य होने पर भी यदि व्यक्तिगत स्थान का मालिक गृहस्थ अंतराय करे, तो उपर दिखाए गए संयोगो में कठोरता से भी रोकना चाहिए । तो फिर श्री संघ को समर्पित किये हुए स्थानो में अनधिकृत रुप से जोहुकमी चलाई जाए, महामारी के संयोगो में विहार करने का दबाव डाला जाए वह किसी भी तरीके से उचित कहा जा सकता है ?