प्रश्न 7 – पंडित महाराज के तीर्थरक्षा के कार्यों में पेढ़ी क्यों उनका साथ नहीं देती, इस बात पर उन्हें सोचना चाहिए । धीरजपूर्वक पेढ़ी को साथ में लेने का प्रयास किया जाएँ तो सब कुछ हो सकता है ।
उत्तर – गच्छाधिपति पूज्य पंडित महाराज का जवाब – सवाल पूछने वाले को इतना खयाल होना चाहिए कि पेढ़ी की आग्रहभरी विनंती के कारण मैं तीर्थरक्षा के कार्यों से जुडा हूँ । उसमें मेरा कोई आग्रह नहीं था । उसके बाद हुए अनुभवों के सिलसिले से मुझे समझ में आने लगा कि पेढ़ी के संचालक उनके कहे अनुसार कार्य करने वाले महात्माओं को ही सहयोग देना पसंद करते हैं । फिर भी तीर्थरक्षा के केन्द्रबिन्दु को छोडे बगैर दो-ढ़ाई दशकों तक पेढ़ी को तीर्थरक्षा के कार्यों में साथ में लेने के भरसक प्ररयत्न करता रहा हूँ । ऐसी परिस्थिति में तीर्थरक्षा के लिए पेढ़ी का सहयोग प्राप्त करने के लिए अब भी धीरज रखने की सलाह का भावार्थ क्या है ? सहयोग प्राप्त करने की मेहनत करते रहे, आयुष्य पूरा हो जाए तब तक धीरज रखते रहे, तो क्या परलोक में पहुँचने के बाद तीर्थरक्षा के कार्य किए जाएँ ? दूसरी ओर, धर्मशास्त्र धर्माचार्यों को आदेश देते हैं कि सर्व प्रयत्नों से विलंब किए बगैर तीर्थरक्षा के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए । इन दोनों सलाहों में से किसे महत्त्व दिया जाना चाहिए, यह समझदार व्यक्ति अच्छी तरह समझ सकते हैं ।