जिस आत्मा में या जड साधनों में तारकशक्ति न हो, उन्हें तीर्थ नहीं कह सकते !!
इस विश्व में जिसमें लायक जीवों को तारने की शक्ति हो, वैसे आलंबन स्वरूप जिनप्रतिमा, जिनालय, तीर्थभूमियाँ, उन्हीं को तीर्थ कहा जाता है..!!
इस कलिकाल में भी हमें श्रेष्ठ तीर्थभूमि स्वरूप कल्याणक भूमि, निर्वाणभूमि आदि प्राप्त हुई हैं, वह हमारा बड़ा सद्भाग्य है..!!
– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा ।
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