साधु जब संयम ग्रहण करता है, तब देव – गुरु – धर्म के अलावा उनके सिर पर कोई नहीं होता, लेकिन आज जो दीक्षा ले उनके सिर पर ट्रस्टीयों की आज्ञा चलती है।
घर पे माँ – बाप का न मानें तो भी दीक्षा जीवन में ट्रस्टीयों का मानना अनिवार्य है।
उनकी आज्ञा न माने उसे पूरी जिंदगी Unwanted होकर जीने की तैयारी रखनी पडती है।
श्रमण प्रधान चतुर्विधसंघ में श्रावकशाही आने की वजह से आज तपस्वी – त्यागी श्रमणों को ऐसी अशोभनीय परिस्थिति से गुझरना पड़ रहा है!!
– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा ।
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