Tirth ki sahay se tere, vo tirthankar nahi | Mahasattvashali – 252

तीर्थ की सहाय से तैरे, वो तीर्थंकर नहीं होते..!! उन्हें अंतिम भव में तैरने के लिए किसी भी आलंबन या सहाय की जरूरत नहीं होती… इसलिए वे न तो जिनमंदिर में दर्शन पूजा करने जाते हैं, नाहि गुरु भगवंतों से शास्त्रश्रवण करते हैं… वे तो ऐसे समर्थ और शक्तिशाली होते हैं कि वे विश्वहित के लिए धर्मतीर्थ का निर्माण करते हैं… उनके पदार्पण मात्र से भूमि तीर्थ बन जाती है..!!
– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा