इस कलिकाल में भी लायक, भव्य जीवों को तैरने का आलंबन दें, ऐसे तीर्थों की विरासत हमें तीर्थंकरों ने दी है..!! तीर्थ भी दो प्रकार के होते हैं… द्रव्यतीर्थ और भावतीर्थ… भावतीर्थ ऐसे गणधर, विशेष लब्धिधारी, विशिष्ट ज्ञानी महापुरुष आज हमारे कमभाग्य से मौजूद नहीं हैं… लेकिन तीर्थंकरों के पदार्पण से पवित्र बनी तीर्थभूमियाँ आज भी हमारे लिए पवित्रता प्रदान कर रही हैं..!!
– प. पू. गच्छाधिपति श्रीमद्विजय युगभूषणसूरिजी महाराजा