Shravakon Ko Satta Chhodne Ki | Mahasattvashali – 66

श्रावकों को सत्ता छोड़ने की तैयरी नहीं है और सत्ता पर बैठकर जिम्मेदारियां निभाने की तैयरी भी नहीं है !!
इसी कारण जिनशासन को भयंकर नुकसान पहोंचा है ।

हमें उपाश्रयों की, हमारे विचरण की ज्यादा चिंता नहीं है ।
संयमी, तपस्वी, त्यागी महात्मा मुक्ततया अपनी संयमचर्या का पालन कर सकें, विचरण करके लोकोपकार कर सकें इसकी व्ययस्था श्रीसंघ करे तो अच्छा है, करने जैसा ही है।

लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता हमें तीर्थों की हो रही है ।

तीर्थोंको श्रावकों ने अपने नाम किया, गैरजिम्मेदार वहीवट किया……
इसी कारण आज यह भयंकर परिणाम हमें देखना पड़ रहा है !!!

एक-एक महातीर्थ का इतिहास सुनेंगे तो हृदय कमकमा जाए, ऐसी बातें हैं।

– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा।
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Let’s #ReclaimRanakpur
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