आप अपने संतान के मालिक जरूर हैं, लेकिन ममत्व और राग के कारण आपको उनके परिग्रह का पाप लगता है।
इसी तरह साधु भी अपने शिष्य के मालिक होते है, लेकिन ममत्व आदि का भाव आए, तो उन्हें भी परिग्रह का पाप लगता है !!
इस तरह ममता से तो पूरी दुनिया का परिग्रह आप कर सकते हैं, पर वहाँ मालिकीयत नहीं होती !!
मालिकीयत और परिग्रह दोनों अलग चीजें हैं ।
इस चीज को गहराई से सोचने की जरूरत है ।
– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा ।
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Let’s #ReclaimRanakpur
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As the first step,
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