Kaise manzoor kare? | Mahasattvashali – 117

चतुर्विध श्री संघ हमारे लिए पूजनीय है..!!
आदरणीय है..!!
श्री संघ जिनाज्ञानुसार जो कहे वह हाथ जोड़कर स्वीकारेंगे..!!

तीर्थंकरों की आज्ञा की तरह चतुर्विध श्री संघ की भी योग्य आज्ञा का अनादर नहीं करेंगे..!!

लेकिन जो श्री संघ नहीं बल्कि ट्रस्ट है और उनके वहिवटकर्ता ट्रस्टी मिलकर कहे कि हम जो कहे वह तीर्थंकर की आज्ञा समझकर शिरोमान्य करनी होगी तो कोई भी संयमी गीतार्थ साधु उसे कैसे मंजूर करे..??

– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा ।
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