Is vishwa mein jitne bhi tirth hain | #Mahasattvashali – 249

इस विश्व में जितने भी द्रव्य या भावतीर्थ हैं…
उन सभी के आद्यस्त्रोत तीर्थंकर हैं..!!

तीर्थंकर स्वयं पूरे विश्व को तारने की क्षमता रखते हैं…

पर उन्हें तीर्थ केहना उनका degradation है…
क्योंकि जो तीर्थ का निर्माण करे, वो तीर्थंकर कहलाते हैं…

तीर्थंकर जहाँ चरणन्यास करें वह भूमि भी तीर्थ स्वरूप बन जाती है…

अत: तीर्थंकर तीर्थ नहीं, बल्कि तीर्थं के सर्जनहार हैं, तीर्थ से above हैं..!!

– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा ।
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