कोई थोड़ी निंदा करे, या आरोप लगाए, इतने में ही आप डगमगाने लगें और पसीना छूट जाए !
इसमें मूल कारण आपकी लोकसंज्ञा है !
इस लोकसंज्ञा का त्याग करने जैसा है !
हाँ, हमारी गलती हो तो सुधार लाने से लाभ होगा !
लेकिन बिना वजह ही आवेश में आकर कोई कुछ भी कहे, उससे डर के शासन के इस उत्तम कार्य को ढीला छोड़ना जरा भी उचित नहीं है !
– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा ।
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