Darr se karya ko chodna uchit nahi | Mahasattvashali – 174

कोई थोड़ी निंदा करे, या आरोप लगाए, इतने में ही आप डगमगाने लगें और पसीना छूट जाए !

इसमें मूल कारण आपकी लोकसंज्ञा है !

इस लोकसंज्ञा का त्याग करने जैसा है !

हाँ, हमारी गलती हो तो सुधार लाने से लाभ होगा !

लेकिन बिना वजह ही आवेश में आकर कोई कुछ भी कहे, उससे डर के शासन के इस उत्तम कार्य को ढीला छोड़ना जरा भी उचित नहीं है !

– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा ।
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