Gruhasthon Ki Sammati Kyon Nahi Li | Aakhir Kyon – Ep 5

आखिर क्यों ? – ५

प्रश्न: साधुओं को उपाश्रय में ठहरते समय गृहस्थों की संमति लेने की विधि क्या पंडित महाराजजी मान्य नहीं करते ?

उत्तर: महान आगम श्री बृहत्कल्पसूत्र की टीका में शास्त्रकार भगवंत फरमाते हैं कि,

तत्र देवेन्द्र-राजावग्रहयोर्मनसैवानुज्ञापनं करोति, गृहपत्यवग्रहस्य मनसा वा वचसा वा, सागारिक​-साधर्मिकावग्रहयोर्नियमाद् वचसाऽनुज्ञापना, ….. ॥६८४॥

इस सूत्र में जिन के क्षेत्र संबंधी अवग्रह यानि अधिकार होते है, उन पाँच व्यक्तिओ की संमति लेने की विधि दर्शाई है |

उनमें प्रथम दो अवग्रह इन्द्र महाराजा और चक्रवर्ती के होते हैं, उपाश्रय में ठहरते समय उनकी मन से संमति लेनी होती है | तीसरे अवग्रह वाले गृहपति यानि मांडलिक राजा की संयोगानुसार मन से या वाणी से संमति लेनी होती है | जबकि शय्यातर यानि गृह मालिक और साधर्मिक यानि उस स्थान पर पहले से बिराजमान अन्य महात्माओ की संमति वचन से लेनी आवश्यक है |

जो प्रश्न पूछा गया है वह गृहमालिक यानि शय्यातर के बारे में है । इसलिए यहाँ पर शय्यातर की संमति को जरा समझेंगे |

जो घर या व्यक्तिगत उपाश्रय होते हैं, उनके मालिक शय्यातर कहलाते हैं, उसी तरह जो उपाश्रय संघ को समर्पित कर दिये है, उस उपाश्रय के निर्माण में जिन लाभार्थीयों ने लाभ लिया है उनको शय्यातर गिने जाते हैं | जो प्रचलित व्यवहार है |

अब इन शय्यातरों ने अनेक उपाश्रयो में प्रारंभ से ही तपागच्छीय प्रत्येक संयमीओं को उपाश्रय में स्थिरता करने के लिए हंमेशा की संमति दे दी होती है, ऐसे उपाश्रयो में ठहरते वक्त शय्यातर की संमति तो स्वतः होती ही है, तो भी शास्त्रीय व्यवहार को प्रवर्तमान रखने हेतु, उस समय उपस्थित कोई स्थानिक श्रावक या वहीवटदार या कार्यकर्ता को भी कहकर उपाश्रय में स्थिरता करने का व्यवहार प्रसिद्ध है |

महात्माओने गृहस्थो के पास से एक साथ ली हुई औषधि आदि का प्रतिदिन उपयोग करने के लिए कोई भी उपस्थित गृहस्थ को धर्मलाभ देकर ग्रहण किया जाता है । क्यूंकि औषधि के दाता गृहस्थ की संमति पहले से मिल ही गई है । कुछ इसी तरह उस प्रकार के उपाश्रयो के बारे में भी व्यवहार होता है ।

जब कि जाहिर स्थान न हो ऐसे व्यक्तिगत मालिकी वाले घर, उपाश्रय आदि में गृहस्थ मालिक की संमति लेनी सामान्यतया अनिवार्य होती है |

बाकी, ट्रस्टीगण संघ के उपाश्रयों के ना तो मालिक है, ना ही शय्यातर । इसलिए अपनी मरजी से महात्माओं को उपाश्रय में ठहरने की संमति देने या न देने का कोई स्वतंत्र अधिकार उनके पास नहीं है । उनके पास सिर्फ नीति-नियमानुसार प्रबंधन करने का ही अधिकार है । यह तथ्य सबको ध्यान में रखना ज़रूरी है ।