Dharm Sthan Par Malikiyat Kiski Aur Swamitva Kiska ? | Aakhir Kyon – Ep 7

आखिर क्यों ? – ७

प्रश्न : ट्रस्टी गण यदि शय्यातर हो तो महात्माओ की गोचरी के लिए उनके घर बंध हो जाने की, पंडित महाराज जी ने जो आपत्ति दी है, वैसी समान आपत्ति उपाश्रय निर्माण के लाभार्थियो के लिए भी नहीं आयेगी ?
क्योंकि उनके घर पर भी गोचरी नहीं जाने का व्यवहार जैन संघ में कहां दिखता है ?

उत्तर : तपागच्छ के प्रायः सभी समुदायो में वडीलो से ऐसी परंपरा चली आती है कि, उपाश्रय निर्माण में योगदान देने वालो में से एक सद्गृहस्थ को प्रतिदिन के शय्यातर के रुप में नियत करना और उस दिन के लिए गोचरी आदि हेतु उनके घर को वर्जित करना । यह परंपरा अच्छी तरह से समझाती है कि, ट्रस्टी गण मालिक के रुप में मान्य नहीं है, लेकिन उपाश्रय निर्माण में योगदान देने वाले गृहस्थो की ही संयुक्त मालिकीयत मान्य होती है, इसी कारण उनको शय्यातर गिना जाता है अन्य किसी को नहीं ।

यदि अन्य गृहस्थो को शय्यातर के रुप में लाभ लेने की इच्छा हो तो उपाश्रय में योगदान के रुप में नकरा आदि देकर प्रतिदिन के शय्यातर बनने की भी परंपरा है । जिनको प्रायः सभी समुदाय प्रतिदिन के शय्यातर के रुप में स्वीकारते है ।

यहाँ पर सुज्ञजन समझ ही लेंगे कि, जाहिर धर्मस्थान पर गृहस्थो की दाता स्वरुप मालिकीयत होती है, बाकी स्वामित्व आदि के सारे अधिकार श्रमण प्रधान श्री संघ के ही होते है ।