Avagrah Kyu Nahi Liya | Aakhir Kyon – Episode 2
प्रश्न – पंडित महाराज जी ने १० मार्च 2022 को नवरोजी लेन उपाश्रय में पहले से बिराजमान महात्माओं का अवग्रह लिए बिना ही प्रवेश कर लिया था । क्या अवग्रह लेना अनिवार्य नहीं है?
उत्तर – जहां उचित वर्तन की संभावना नहीं होती, वहां सामने से इस प्रकार का व्यवहार नहीं करना चाहिए, ऐसी जिनाज्ञा होने के कारण मैंने अवग्रह मांगने का प्राथमिक व्यवहार नहीं किया था । यहां पर यह समझना जरूरी है कि उपाश्रय आदि में अवकाश होने के बावजूद भी जो व्यक्ति स्थान न दे, चाहे वह महात्मा हो या श्रावक, उनको बहुत बड़ा प्रायश्चित्त आता है – ऐसी शास्त्राज्ञा है । शास्त्रों में वहां तक विधान है कि ऐसा करने वाला शासन विच्छेद का भयंकर दोष मोल लेता है।
देखिए यह शास्त्राधार:
साम्भोगिकानां च वसतिमध्ये विद्यमानं यो न ददाति तस्य चतुर्लघु, अग्न्यादिना वसत्युपद्रवात् श्वापदादिभयाद्वा शैक्षग्लानाद्यर्थं वाध्वप्रपन्ना वा य आगतास्तेषां विद्यमानस्थानादाने चतुर्गुरु प्रायश्चित्तम् । सम्भोगसाधर्मिकवात्सल्यप्रवचनव्युच्छित्तिश्चेति जीतवृत्तावुक्तम् ।
( गुरुतत्त्वविनिश्चय टीका , उल्लास 3, (कुगुरुत्यागसुगुरुसेवा) )
दूसरी ओर शास्त्रकार भगवंत फरमाते हैं कि चालू विहार के बीच में आते स्थानों में अवग्रह मांगे बिना भी ठहर सकते हैं। ऐसे अमुक संयोगों में अवग्रह मांगना अनिवार्य बताया नहीं है।
देखिए वह शास्त्राधार:
सूत्रे हि अनुज्ञापनमन्तरेणापि पूर्वमवग्रहग्रहणमनुज्ञातमिति। ….. तानि च कारणानि इमानि वक्ष्यमाणलक्षणानि भवन्ति।। … अध्वनि मार्गे गताः साधवः, तत्रान्यत्र याचिता वसतिः परं न लब्धा, ….. व्यतिकृष्टमन्तरमपान्तराले इति कृत्वा सार्थवशेन वा विवेले विकाले प्राप्ताः, अन्या च वसतिर्न रोचते वसतिमन्तरेण च स्तेनभयं वा श्वापदभयं वा, मशका वा दुरध्यासाः।
( महान आगम श्री व्यवहारसूत्र अध्ययन – 08, गाथा-3504-3505 टीका)
सारांश यह है कि इस संयोग विशेष में अवग्रह नहीं मांगने से मैंने कुछ भी जिनाज्ञा विरुद्ध किया नहीं है ।
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