Shikharji Mahatirth Anmol Virasat | Mahasattvashali – 234

महापुण्य से हमें श्री शिखरजी महातीर्थ विरासत में मिला है… यह ऐसा महापवित्र…गिरिराज है, जिसकी गिरिमालाओं में वर्तमान चौवीसी के २०-२० तीर्थंकरों की चरण स्पर्शना हुई है… देवताओं ने यहाँ अनेक बार समवसरण की रचना की है… तीर्थंकरों की अमोघ देशना के पुद्गल एवं अनेक गणधर भगवंतों की वाणी के पुद्गल यहाँ बिखरे पड़े हैं… असंख्य साधकों को यहाँ “भावधर्म” और “भावचारित्र” की प्राप्ति हुई है… और भविष्य में भी करेंगे…!! क्या ऐसा अनमोल तीर्थ हम युंही अपने हाथों से गंवा देंगे…??
– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा