हमारे पूर्वजों ने शासन की, तीर्थों की विरासत को बचाने के लिए प्राणों के बलिदान देकर उनकी रक्षा की है | शासन के लिए तन – मन – धन सर्वस्व न्योछावर कर दिया है और आज शासन के अंदर के लोगों से ही अपने प्यारे जिनशासन को खुरेदने की प्रवृत्ति चल रही है !! आज आप के दिल में भी शासन बसा है या नहीं.. इसकी परीक्षा का अवसर आ गया है !! जिन शासन की आन – बान – शान को ठेस लगे, शासन की व्यस्थाओ को तोड़ दिया जाए, तीर्थों का विनाश होने लगे… फिर भी उपेक्षा बरकरार रहे रक्षा की भावना ही न पनपे, तो आप शासन के रागी या शासन के सुभट नहीं हो सकते !!
प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा