यह भी एक अजीब paradox है दुनिया में…
मृगजल जैसे सुख के पीछे दौड़े चले जाते हैं…
जितना ही सुख पाना चाहते हैं, उतना ही सुख दूर जा रहा है…
इच्छाएं, तृष्णाये ( प्यास ) कम नहीं होती जितना प्रयत्न करें उतनी इच्छाएं तृष्णाये ( प्यास ) बैठती जाती है… आज भी इसी सुख की दौड़ चालू है…
कल भी दौड़ रहे थे…
और आगे भी दौड़ते रहेंगे…
पर जिस सुख के पीछे वो struggle कर रहे हैं…
वो क्या सच में पा सकेंगे ?
Complete, true, independent, pure, permanent, happiness की जो अंदर में इच्छा है… वो किस चीज से पूरी होने वाली है!!
ये किसी को पता ही नहीं है…
बस बाहर की दुनिया में ही दौड़े जा रहे हैं…
पर यह नहीं जानते कि सुख बाहर नहीं, अंदर है…
अंदर में चलना, दौड़ना, पुरुषार्थ करना जरूरी है…!
क्या आप जानना चाहते हैं ?
मन की दुनिया के रहस्यों को समझना चाहते हैं, तो आइए अंदर की दुनिया के शहनशाह परम पूज्य गच्छाधिपति युगभूषणसुरीश्वरजी महाराज के द्वारा “ उपमिति भवप्रपंच कथा “ ग्रंथ के आधार पर “ मनोजगत के अगम रहस्यों “ की अनुठी बातें जानेंगे…
रविवार के प्रवचन में और अंदर की दुनिया के मालिक खुद बनेंगे
Time and Venue :- Gitarth Ganga संकुल, बोरीवली। रविवार सुबह ९ से १२ बजे तक।