Ujjinta Sel Sihare, Dikkha Nanam Nissihiya Jassa | Jo Tare Wo Tirth – 3

शास्त्रों में लिखा है जहाँ पर तीर्थंकरों का चरणन्यास होता है.. वो भूमि तीर्थ बन जाती है..!!

तीर्थंकरों के विशुद्ध भावों से वहाँ का वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जायुक्त बन जाता है..

अरबों साल भी बीत जाएँ, तो भी वहाँ उनके देह के, मन के पवित्र पुदगल जो शांतरस से भावित होते हैं, उसकी पवित्रता से वो भूमि पूत पावन बनी रहती है..!!

बाल ब्रह्मचारी बावीसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ परमात्मा ने जिस भूमि पर दीक्षा ग्रहण की…

नव भव से चली आ रही राजुल की प्रीत के संबंधों को छोड़कर गिरनार तीर्थ पर जिन्होंने महासत्व से ‘करेमि सामाईयं’ की भीष्म प्रतिज्ञा ली…

आत्मा की विशुद्धि इतनी उच्च कक्षा की थी कि दीक्षा लेते ही उन्हें मन:पर्यवज्ञान की प्राप्ति हुई…

उसके बाद पचपन दिन तक समता की द्रढ साधना से अनादिकालीन आत्मा के सभी कषाय, मोह, राग, द्वेष, आदि आंतर शत्रुओं पर विजय पाकर उन्होंने वीतरागता और पूर्णज्ञान की प्राप्ति भी इसी गिरिराज पर की..!!

देवताओं ने आकर समवसरण की रचना की…

श्री नेमिनाथ प्रभु ने देशना की धारा बहाई और प्रथम देशना में ही गणधरों की स्थापना के द्वारा श्रीसंघ की स्थापना एवं धर्मशासन की स्थापना की…!!

इतना ही नहीं, इसी गिरिराज के शिखरों पर श्री नेमिनाथ प्रभु ने शुक्लध्यान की श्रेणियों में आरूढ़ होकर सर्व बंधनों से मुक्त, पूर्ण, अव्याबाध, शाश्वत सुख के स्थान स्वरूप शिवमंदिर की प्राप्ति भी की…!!

तीन तीन कल्याणकों से धन्य बनी इस पवित्रतम तीर्थभूमि की स्पर्शना से आज भी भव्य जीवों को अनुपम आध्यात्मिक आनंद का अनुभव होता है…
जय गिरनार !!
जय गिरिराज !!

– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा ।
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