तीर्थ कैसे बनते हैं?
तीर्थंकर जहां पदार्पण करते हैं…
उनके पवित्र चरण कमल के स्पर्श से धरा पावन ही नहीं बल्कि तीर्थ बन जाती है…
लेकिन ऐसा क्यों होता है ?
क्योंकि वे जो साधना करते हैं उनके विशुद्ध भावों की असर वातावरण पर होती है…
जिसे हम आज भी शत्रुंजय, गिरनार, शिखरजी, वाराणसी और पावापुरी जैसे तीर्थों में महसूस कर सकते हैं।
इन पवित्र तीर्थों का ऐसा प्रभाव है कि इस कलिकाल में भी सच्चे साधकों को साक्षात् परमतत्त्व की प्रतीति कराते हैं।
– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा ।
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