Is Shasan Ki Vajah Se Mili Hai | #Mahasattvashali – 256
प्रभु के द्वारा स्थापित धर्मशासन के प्रभाव से इस विषम काल में भी हम अनगिनत
प्रभु के द्वारा स्थापित धर्मशासन के प्रभाव से इस विषम काल में भी हम अनगिनत
जिस आत्मा में या जड साधनों में तारकशक्ति न हो, उन्हें तीर्थ नहीं कह सकते
मिथ्यात्व एवं मोहग्रस्त पामर जीवों को आत्मिक सुख की ओर आगे बढ़ना हो… तो उन्हें
इस कलिकाल में भी लायक, भव्य जीवों को तैरने का आलंबन दें, ऐसे तीर्थों की
तीर्थ की सहाय से तैरे, वो तीर्थंकर नहीं होते..!! उन्हें अंतिम भव में तैरने के
क्या प्रभु ऋषभदेव शत्रुंजय तीर्थ की यात्रा हेतु या वहाँ पर साधना करने हेतु पूर्व
तीर्थंकर जहाँ पर साधना करते हैं, जहाँ पर विचरण करते हैं, जहाँ उनके जीवन की
इस विश्व में जितने भी द्रव्य या भावतीर्थ हैं… उन सभी के आद्यस्त्रोत तीर्थंकर हैं..!!
वैसे तो हरेक धर्म में ‘तीर्थ’ शब्द का प्रयोग देखने मिलता है… लेकिन एक research
अधर्म के क्षेत्र में किया गया पाप जितना भयंकर है… उसके मुकाबले में धर्म के