प्रश्न 5 – पंडित महाराज ने हमारे पक्ष की भूलों को क्यों विस्तार पूर्वक उजागर किया ?
उत्तर – यदि सिर्फ ऐसा कहा होता कि ‘एफिडेविट आदि में भूलें हैं’ तो गाजे-बाजे के साथ जैन संघ में स्वागत किए गए जजमेन्ट के बारे में ऐसी बात क्या कोई स्वीकारता ? इससे क्या उन भूलों को सुधारने की दिशा में स्पष्टता मिलती ? हमारे जैनों के गले उतर जाए उस प्रकार का स्पष्टीकरण किए बगैर, उसके जोखिम बताए बगैर मात्र ऐसा कह दिया होता कि ‘फलां-फलां मुद्दों में त्रुटियाँ है’ तो उससे क्या हासिल होने वाला था ? शासन को हुए नुकसान की भरपाई तो होनी चाहिए ना ? अरे ! दो और दो चार जैसी स्पष्ट बात कहने पर भी जैन संघ में विश्लेषण में कह गए मुद्दों पर अंदर ही अंदर गुनगुनाहट चालु है । यदि अस्पष्ट रूप से कह दिया होता तो समझदार लोग भी मेरी बात पर कैसे विश्वास करते ? फिर भी ‘पंडित महाराज को ऐसी बातें खुलेआम रूप से नहीं करनी चाहिए’ – ऐसी चर्चा ज़ोरों से की जा रही है । कहीं ऐसा तो नहीं है ना कि चोरी हो जाने पर दरवाज़े खुले रखने वाले को अटकाने या चोरी का माल वापस लाने की मेहनत करने के बदले सभी को जगाने के लिए भौंक रहे कुत्ते को फटकार लगाकर चुप करने की मनोवृत्ति हम पर हावी हो गई हो ? धर्मक्षेत्र में ऐसी मनोवृत्ति भयंकर नुकसानदायक हो सकती है ।