प्रश्न 3 – उपरोक्त विश्लेषण में चर्चित बिंदुओं से विपक्ष को विरोधी मुद्दें मिल गए उसका क्या ? इस प्रकार सार्वजनिक रूप से विश्लेषण जारी करने से तीर्थ की रक्षा हुई या हानि ?
उत्तर – यह तो काफी हास्यास्पद बात है । एक-एक शब्द या वाक्य के आधार पर जब कार्यवाही चल रही हो, हर शब्द की जहां हाज़री ली जाती हो, विपक्ष या न्यायाधीशों की गतिविधियों में से खुद को क्या उपयोगी है – इस बात पर पैनी नज़र रखी जाती हो, विपक्ष में भी ध्यान रखने वाले कानून और बुद्धि के दिग्गज हो – ऐसी परिस्थिति में विपक्ष के सामने कोर्ट-कचहरी की कार्यवाहियों में नुकसान दायक बयान देने वाले ने ‘विपक्ष को विरोधी मुद्दें दिए’ – ऐसा न कहा जाएँ !! उपरोक्त केस से जिनका कोई लेना-देना न हो वैसे विपक्ष के धुरंधरों के सामने भी Print और Social मीडिया जैसे सार्वजनिक माध्यमों में शासन को नुकसानदायक बातें खुलेआम जारी कर दी गई फिर भी – ‘विपक्ष को विरोधी मुद्दें दिए’ ऐसा न कहा जाएँ !! लेकिन उपरोक्त चेष्टाओं से कहीं शासन को नुकसान न हो – इस नेक इरादे से श्रीसंघ को जागृत करने वाले ने – ‘विपक्ष को विरोधी मुद्दें दे दिए’ ऐसा कहा जाएँ !! है ना गले पडनेवाली बात । घर जल रहा हो, आग बेकाबू हो, तब गाँव वालों को मदद के लिए पुकारने वाले पर घरवालें टूट पडे – ऐसी दुर्दशा आज जैन संघ में कुछ परिबलों ने सर्जी है । बाकी, सिर्फ पंडित महाराज ही ऐसे मुद्दें उजागर कर सकते हैं – ऐसा मानने वाले ज़रूर भूल कर रहे हैं । वास्तव में तो जो सामान्य कक्षा के वकील हो, वे भी स्वयं आसानी से इन मुद्दों को पकड सकते हैं । और तो और विपक्ष के उस्तादों ने तो कभी के इन मुद्दों को पकड लिया होगा । यहां इतना कहना चाहूँगा कि घर में जब आग लगी हो तब समझदार व्यक्ति इस पंचायत में पडने की भूल नहीं करता कि मदद के लिए आवाज़ किसने लगाई । वह तो समझता है कि आवाज़ लगाने वाले ने बिल्कुल सही किया है । उसी प्रकार तीर्थ को बड़ा नुकसान हुआ है, जो स्पष्ट और सिद्ध है, उस विषय में आवाज़ किसने उठाई – इसकी चिंता करने के बजाए किसी भी तरह उस नुकसान से तीर्थ बच जाएँ – यह सोचने में सच्ची समझदारी है । अंत में एक बात संघ के प्रत्येक व्यक्ति को ध्यान में रखनी चाहिए कि जो बातें गुप्त रखने योग्य थी उनकी पूरी गोपनीयता बनाए रखी है ।