प्रश्न 2 – इन बातों का निपटारा अंदर ही अंदर कर लेना चाहिए । आणंदजी कल्याणजी पेढ़ी या आचार्य भगवंतों को सीधे जानकारी देनी चाहिए । उसे सार्वजनिक करने का क्या कारण है ?
उत्तर – जजमेन्ट आदि की समीक्षा का तो फल यही है कि नुकसान का निवारण हो । यदि सीधे पेढ़ी को अवगत करा दिया होता तो पिछले 25 वर्षों के अनुभव के अनुसार लगभग निष्क्रिय आश्वासन या मौन के रूप में ही प्रत्युत्तर प्राप्त होता । ऐसा निष्फल प्रयास करने से क्या कोई लाभ है ? पूज्य गच्छाधिपतियों या आचार्य भगवंतों को भी शासन की समस्याओं से अवगत कराने पर अपवाद को छोड लगभग ऐसा ही अनुभव हुआ है । ऐसी परिस्थिति में जैनों को जागृत करने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा था । जैनों में से कोई विरले व्यक्ति अधिकृत धर्माचार्यों द्वारा या सीधे पेढ़ी द्वारा विश्लेषण में बताई गई भूलों को सुधरवा सके, उन्हें व्यवस्थित दिशा मिले – इस उद्देश्य से श्रीसंघ को जागृत करने में क्या तीर्थरक्षा नहीं समाई है ?