आराधना को गौण करके भी रक्षा करने का जैनीयों का पहला फर्ज बनता है..!!
आप शासन को अपना मानेंगे, तो रास्ते भी अपने आप मिलने लगेंगे..!!
मैं तो आपके मुंह से इतना ही सुनना चाहता हूँ कि, देव-गुरु-धर्म ही मेरे अपने हैं, शासन ही मेरा प्राण है और शासन ही आधार है..!!
इसलिए शासन का जो भी काम हो, वो मुझे बेझिझक बताएगा..!!
ये सुनने के लिए मेरे कान तरस रहे हैं..!!
लेकिन क्या ऐसे शासन के सुभट के दर्शन होंगे, ऐसा मेरा सौभाग्य होगा..??
– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा ।
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