जैन शास्त्रों के मुताबिक मालिकी भी अनेक प्रकार की होती है।
जैसे कि व्यवहार से, आपके घर के फर्निचर के आप भी मालिक हो और साथ में वह फर्निचर जिस लकड़े में से बना वह लकड़े का जीव भी सूक्ष्म अपेक्षा से उसका मालिक गिना जाता है।
उसी तरह आगमों में बड़ी गहराई से वर्णन किया है कि कौन सा क्षेत्र साधु के लिए कैसे आभाव्य और कैसे अनाभाव्य होता है।
अर्थात, कौन से क्षेत्र पे किस साधु का आधिपत्य गिना जायेगा और कहाँ नहीं गिना जाएगा यह भी आगमों में स्पष्ट रूप से उपलब्ध है।
– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा ।
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Let’s #ReclaimRanakpur
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Watch “Ranakpur ki Karun Pukar” video series:
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