तीर्थंकरों के पांचों कल्याणक कल्याणकारी हैं…!!
लेकिन सबसे अधिक विशुद्धि और आत्मा की निर्मलता… “निर्वाण कल्याणक” के वख्त होती है…!!
इस शिखरजी तीर्थ पर २०-२० तीर्थंकरों की अंतिम साधना के “मनोवर्गणा” के पुद्गल यहाँ बिखरे पड़े हैं…!!
उनके तेजवर्तुल आज भी यहाँ पर बीछे हुए हैं…!!
इस तीर्थ की रक्षा में अपना तन-मन-धन-सर्वस्व समर्पण करना पडे, तो वो भी करके तीर्थ की रक्षा करनी चाहिए…!!
– प. पू. गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय
युगभूषणसूरिजी महाराजा ।
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