Nishedh Hote Hue Bhi Pravesh Kyu Kiya | Aakhir Kyon – Ep 3
प्रश्न: १० मार्च २०२२ को पंडित महाराजजी ने ट्रस्टीयों का निषेध होते हुए भी नवरोजी लेन उपाश्रयमें प्रवेश कर लिया था, तो क्या उपाश्रय में किनको आने देना, किनको न आने देना वह तय करने का अधिकार ट्रस्टीयों के पास नहीं है ?
उत्तर: कोई भी समझदार व्यक्ति इतना तो जरूर मानेगा कि ट्रस्टी कभी भी धर्मस्थान के मालिक नहीं हो सकते, वे सिर्फ धर्मस्थान के वहीवट को ही संभालने वाले होते है |
जब लाभार्थी गृहस्थो ने कोई धर्मस्थान बनाकर तपागच्छ के श्री संघ को आराधना हेतु सुपुर्द कर दिया है, उसका मतलब यह होता है कि तपागच्छ के श्री संघ में समाविष्ट होते संयमी साधु – साध्वी – श्रावक और श्राविका को यह स्थान में स्थिरता कर के आराधना करने के लिए कायम की संमति धर्मस्थान के निर्माण कर्ताओ ने दे दी है | अब उन्हें रोकने का अधिकार कोई ट्रस्टी के पास कैसे आ सकता है ?
क्या धर्मस्थान की मर्यादाओ को लाँघने का अधिकार कोई शास्त्रोने वहीवटदार श्रावको को दिया है ?
तो भी कोई ट्रस्टी ऐसा करे तो वह दानदाता का द्रोह, शास्त्रीय व्यवस्थाओ का द्रोह करने के भयंकर दोष का भागी होता है | साथ साथ कानूनन अपराधी भी गिना जाता है |
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